छत्तीसगढ़ राज्य ग्रंथ अकादमी की पुस्तक के आधार पर, यहाँ छत्तीसगढ़ के इतिहास और स्वतंत्रता आंदोलन में इसके योगदान पर एक विस्तृत टाइमलाइन-आधारित नोट्स दिए गए हैं:
निश्चित रूप से, आपके द्वारा प्रदान की गई “छत्तीसगढ़ राज्य ग्रंथ अकादमी” की पुस्तक के आधार पर, यहाँ छत्तीसगढ़ के इतिहास और स्वतंत्रता आंदोलन में इसके योगदान पर एक विस्तृत टाइमलाइन-आधारित नोट्स दिए गए हैं:
छत्तीसगढ़ का इतिहास: एक विस्तृत टाइमलाइन
ज़रूर, आपके द्वारा प्रदान की गई “छत्तीसगढ़ राज्य ग्रंथ अकादमी” की पुस्तक के आधार पर, यहाँ छत्तीसगढ़ के इतिहास और स्वतंत्रता आंदोलन पर एक विस्तृत और आसान नोट्स प्रस्तुत है।
छत्तीसगढ़ का विस्तृत इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम: आसान नोट्स
(CG Rajya Granth Academy पुस्तक पर आधारित)
भाग 1: प्राचीन काल – दक्षिण कोसल की गौरव गाथा
प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ को ‘दक्षिण कोसल’ के नाम से जाना जाता था । इसका इतिहास रामायण काल तक जाता है, जब यह संस्कृति और सभ्यता का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
- रामायण काल और पौराणिक महत्व:
- मान्यता है कि भगवान राम ने दक्षिण कोसल का राज्य अपने पुत्र कुश को सौंपा था ।
- महर्षि वाल्मीकि का आश्रम रायपुर जिले के तुरतुरिया नामक स्थान पर था, जिसे लव और कुश की जन्मस्थली माना जाता है ।
- मौर्य, गुप्त और वाकाटक काल:
- मौर्य काल: यह क्षेत्र मौर्य साम्राज्य का अंग था । सम्राट अशोक के शिलालेख यहाँ मिले हैं । सरगुजा की रामगढ़ पहाड़ी में स्थित ‘सीताबेंगा’ गुफा को भारत की सबसे पुरानी नाट्यशाला माना जाता है ।
- गुप्त-वाकाटक युग: यह क्षेत्र गुप्तों और वाकाटकों के प्रभाव में रहा । गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त ने अपनी दक्षिण विजय के दौरान कोसल के राजा महेन्द्र को पराजित किया था, जिसका उल्लेख उनकी प्रयाग प्रशस्ति में मिलता है ।
- प्रमुख क्षेत्रीय राजवंश:
- नल वंश:
- इनका शासन मुख्यतः बस्तर (तत्कालीन चक्रकूट) क्षेत्र में था ।
- भवदत्त वर्मन इस वंश के सबसे प्रतापी शासकों में से एक थे ।
- इस वंश के शासक विलासतुंग ने राजिम में प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर का निर्माण करवाया था ।
- शरभपुरीय वंश:
- इन्होंने अपनी राजधानी शरभपुर से शासन किया, जिसकी पहचान मल्हार या सिरपुर के पास के किसी स्थान से की जाती है ।
- ये शासक वैष्णव धर्म के अनुयायी थे और ‘परमभागवत’ की उपाधि धारण करते थे ।
- पाण्डु वंश:
- इनकी राजधानी श्रीपुर (आधुनिक सिरपुर) थी ।
- इन्होंने पहली बार इस प्रदेश के लिए ‘कोसल’ नाम का प्रयोग किया और स्वयं को ‘सकलकोसलाधिपति’ (संपूर्ण कोसल का स्वामी) जैसी उपाधियों से विभूषित किया ।
- महाशिवगुप्त बालार्जुन के शासनकाल को इस वंश का स्वर्ण युग कहा जाता है ।
- प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग (Xuanzang) ने महाशिवगुप्त बालार्जुन के शासनकाल में ही सिरपुर की यात्रा की थी ।
- सिरपुर का विश्व प्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर बालार्जुन की माता रानी वासटा ने अपने पति हर्षगुप्त की याद में बनवाया था ।
- नल वंश:
भाग 2: मध्यकाल – कलचुरी वंश और मराठा शासन
इस काल में छत्तीसगढ़ की राजनीतिक और सामाजिक संरचना में बड़े बदलाव हुए।
- कलचुरी वंश (लगभग 1000 ई. से 1741 ई.):
- स्थापना: कलिंगराज ने तुम्माण को राजधानी बनाकर छत्तीसगढ़ में कलचुरी शासन की नींव रखी ।
- रतनपुर की स्थापना: बाद में रत्नदेव प्रथम ने रतनपुर को अपनी नई राजधानी बनाया, जो लंबे समय तक छत्तीसगढ़ की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रहा ।
- ‘छत्तीसगढ़’ नामकरण: यह माना जाता है कि कलचुरी वंश ने ही अपने राज्य को प्रशासनिक सुविधा के लिए शिवनाथ नदी के उत्तर में 18 और दक्षिण में 18, कुल 36 गढ़ों (किलों) में बांटा था, जिसके कारण इस क्षेत्र का नाम ‘छत्तीसगढ़’ पड़ा ।
- सबसे शक्तिशाली शासक: जाजल्लदेव प्रथम इस वंश के सबसे प्रतापी राजा हुए । उन्होंने अपने नाम के सोने और तांबे के सिक्के चलाए और जांजगीर (जाजल्लपुर) नगर बसाया ।
- पतन: 14वीं सदी के बाद यह वंश रतनपुर और रायपुर की दो शाखाओं में बंट गया, जिससे उनकी शक्ति कमजोर हो गई ।
- मराठा (भोंसला) शासन (1741 ई. से 1854 ई.):
- आक्रमण: सन् 1741 ई. में, नागपुर के मराठा शासक रघुजी भोंसले के सेनापति भास्कर पंत ने रतनपुर पर आक्रमण किया ।
- कलचुरी शासन का अंत: उस समय के कलचुरी शासक रघुनाथ सिंह बहुत वृद्ध थे और अपने एकमात्र पुत्र की मृत्यु के शोक में डूबे हुए थे । इस कारण उन्होंने बिना लड़े ही आत्मसमर्पण कर दिया और इस प्रकार छत्तीसगढ़ से कलचुरी शासन का अंत हो गया ।
भाग 3: आधुनिक काल और स्वतंत्रता संग्राम
यह दौर ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध छत्तीसगढ़ के वीरों के संघर्ष, बलिदान और राष्ट्रीय चेतना के उदय का काल था।
- 1857 का महाविद्रोह:
- आपकी दी गई पुस्तक की विषय-सूची में “1857 का विप्लव छत्तीसगढ़” पर एक पूरा अध्याय है, जो इस क्षेत्र में इस संग्राम के महत्व को दर्शाता है । (नोट: इस अध्याय की सामग्री उपलब्ध न होने के कारण विस्तृत जानकारी नहीं दी जा सकती)।
- राष्ट्रीय जागरण और प्रमुख आंदोलन:
- राजनैतिक चेतना: 20वीं सदी की शुरुआत के साथ ही छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार होने लगा, जिसका नेतृत्व कई समाज सुधारकों और नेताओं ने किया ।
- पुस्तक की विषय-सूची के अनुसार, इस काल में छत्तीसगढ़ में कई महत्वपूर्ण आंदोलन हुए, जैसे:
- किसान आंदोलन
- मजदूर आंदोलन
- जनजातीय आंदोलन
- इन आंदोलनों ने छत्तीसगढ़ के आम लोगों को स्वतंत्रता की लड़ाई से जोड़ा और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत आवाज बुलंद की।
- स्वतंत्रता और रियासतों का विलय:
- भारत की स्वतंत्रता के बाद, छत्तीसगढ़ की सभी रियासतों का शांतिपूर्वक भारतीय संघ में विलय हो गया, जिससे इस क्षेत्र का एकीकरण पूरा हुआ ।
छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता आंदोलन: परीक्षा के लिए संपूर्ण नोट्स ✊
1. 1857 का महाविद्रोह: छत्तीसगढ़ में क्रांति का सूत्रपात
1857 की क्रांति में छत्तीसगढ़ की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है, जिससे अक्सर प्रश्न पूछे जाते हैं।
- छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद – वीर नारायण सिंह (सोनाखान विद्रोह):
- परिचय: वीर नारायण सिंह सोनाखान के एक बिंझवार जमींदार थे।
- विद्रोह का कारण: 1856 में पड़े भीषण अकाल के दौरान, उन्होंने अपनी प्रजा को भुखमरी से बचाने के लिए कसडोल के व्यापारी माखन बनिया के अनाज गोदाम का ताला तोड़कर अनाज गरीबों में बंटवा दिया।
- घटनाक्रम: इस घटना के बाद, डिप्टी कमिश्नर इलियट के आदेश पर उन्हें संबलपुर से गिरफ्तार कर रायपुर जेल में बंद कर दिया गया। वे जेल से सुरंग बनाकर भाग निकले और 500 सैनिकों की एक सेना तैयार की।
- शहादत: अंग्रेजों की सेना ने कैप्टन स्मिथ के नेतृत्व में सोनाखान पर हमला किया। देवरी के जमींदार की गद्दारी के कारण वीर नारायण सिंह पकड़े गए और 10 दिसंबर, 1857 को रायपुर के जयस्तंभ चौक पर उन्हें फाँसी दे दी गई। वे छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद हैं।
- रायपुर का सिपाही विद्रोह और “छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे”:
- नेता: रायपुर स्थित तीसरी रेगुलर बटालियन में मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह।
- घटना: 18 जनवरी, 1858 की शाम को उन्होंने सार्जेंट-मेजर सिडवेल की उनके घर में घुसकर हत्या कर दी।
- परिणाम: हनुमान सिंह अंग्रेजों की पकड़ से भागने में सफल रहे, लेकिन उनके 17 साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया और 22 जनवरी, 1858 को उन्हें सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई। हनुमान सिंह को उनके इस साहसिक कार्य के लिए “छत्तीसगढ़ का मंगल पांडे” कहा जाता है।
- अन्य विद्रोह: संबलपुर के सुरेंद्र साय ने भी इस दौरान अंग्रेजों के खिलाफ एक लंबा और सशस्त्र संघर्ष किया।
निश्चित रूप से, यहाँ छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता आंदोलन का एक विस्तृत, परीक्षा-उन्मुख (CGPSC और Vyapam के लिए) विवरण दिया गया है, जिसमें सभी महत्वपूर्ण तथ्य शामिल हैं।
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1. 1857 का महाविद्रोह: छत्तीसगढ़ में क्रांति का सूत्रपात
1857 की क्रांति में छत्तीसगढ़ की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है, जिससे अक्सर प्रश्न पूछे जाते हैं।
- छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद – वीर नारायण सिंह (सोनाखान विद्रोह):
- परिचय: वीर नारायण सिंह सोनाखान के एक बिंझवार जमींदार थे।
- विद्रोह का कारण: 1856 में पड़े भीषण अकाल के दौरान, उन्होंने अपनी प्रजा को भुखमरी से बचाने के लिए कसडोल के व्यापारी माखन बनिया के अनाज गोदाम का ताला तोड़कर अनाज गरीबों में बंटवा दिया।
- घटनाक्रम: इस घटना के बाद, डिप्टी कमिश्नर इलियट के आदेश पर उन्हें संबलपुर से गिरफ्तार कर रायपुर जेल में बंद कर दिया गया। वे जेल से सुरंग बनाकर भाग निकले और 500 सैनिकों की एक सेना तैयार की।
- शहादत: अंग्रेजों की सेना ने कैप्टन स्मिथ के नेतृत्व में सोनाखान पर हमला किया। देवरी के जमींदार की गद्दारी के कारण वीर नारायण सिंह पकड़े गए और 10 दिसंबर, 1857 को रायपुर के जयस्तंभ चौक पर उन्हें फाँसी दे दी गई। वे छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद हैं।
- रायपुर का सिपाही विद्रोह और “छत्तीसगढ़ के मंगल पांडे”:
- नेता: रायपुर स्थित तीसरी रेगुलर बटालियन में मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह।
- घटना: 18 जनवरी, 1858 की शाम को उन्होंने सार्जेंट-मेजर सिडवेल की उनके घर में घुसकर हत्या कर दी।
- परिणाम: हनुमान सिंह अंग्रेजों की पकड़ से भागने में सफल रहे, लेकिन उनके 17 साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया और 22 जनवरी, 1858 को उन्हें सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई। हनुमान सिंह को उनके इस साहसिक कार्य के लिए “छत्तीसगढ़ का मंगल पांडे” कहा जाता है।
- अन्य विद्रोह: संबलपुर के सुरेंद्र साय ने भी इस दौरान अंग्रेजों के खिलाफ एक लंबा और सशस्त्र संघर्ष किया।
2. राष्ट्रीय जागरण और सामाजिक सुधार का युग (1900 – 1920)
यह दौर कांग्रेस की स्थापना और सामाजिक सुधारों के माध्यम से राजनीतिक चेतना फैलाने का था।
- प्रमुख संस्थाएं:
- छत्तीसगढ़ मित्र (1900): माधवराव सप्रे ने पेंड्रा रोड से इस पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया, जिसने पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का प्रसार किया।
- सरस्वती पुस्तकालय (1909): राजनांदगांव में ठाकुर प्यारेलाल सिंह द्वारा स्थापित यह पुस्तकालय क्रांतिकारियों और राष्ट्रवादियों की गतिविधियों का केंद्र था।
- प्रमुख नेता और उनका योगदान:
- पंडित सुंदरलाल शर्मा:
- उपाधि: इन्हें “छत्तीसगढ़ का गांधी” और “छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय जागरण का अग्रदूत” कहा जाता है।
- सामाजिक कार्य: उन्होंने अछूतोद्धार के लिए अथक प्रयास किए और 1925 में गांधीजी से पहले ही राजिम के राजीव लोचन मंदिर में हरिजनों को प्रवेश दिलाया।
- कंडेल नहर सत्याग्रह (1920): धमतरी के कंडेल गांव में किसानों पर लगाए गए सिंचाई कर के विरोध में इन्होंने एक सफल सत्याग्रह का नेतृत्व किया। इस सत्याग्रह की सफलता को सुनकर महात्मा गांधी 20 दिसंबर, 1920 को पहली बार रायपुर आए।
- ठाकुर प्यारेलाल सिंह:
- योगदान: इन्हें छत्तीसगढ़ में “सहकारिता का जनक” और “मजदूर आंदोलन का प्रणेता” कहा जाता है।
- बी.एन.सी. मिल मजदूर आंदोलन: उन्होंने राजनांदगांव में छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी मजदूर हड़ताल का तीन बार (1920, 1924, 1937) सफल नेतृत्व किया।
- पंडित सुंदरलाल शर्मा:
3. गांधीवादी आंदोलन: सत्याग्रह और जन-आंदोलन (1920 – 1947)
इस दौर में छत्तीसगढ़ ने गांधीजी के नेतृत्व में हुए सभी प्रमुख राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- असहयोग आंदोलन (1920-22):
- बिलासपुर में बैरिस्टर छेदीलाल, रायपुर में पं. रविशंकर शुक्ल और दुर्ग में घनश्याम सिंह गुप्त ने आंदोलन का नेतृत्व किया।
- कई वकीलों (जैसे पं. रामनारायण तिवारी) ने वकालत छोड़ दी और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया।
- सिहावा-नगरी जंगल सत्याग्रह (1922): यह छत्तीसगढ़ का पहला जंगल सत्याग्रह था।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन और जंगल सत्याग्रह (1930):
- नमक कानून: पं. रविशंकर शुक्ल और सेठ गोविंद दास ने रायपुर में नमक बनाकर इस कानून को तोड़ा।
- प्रमुख जंगल सत्याग्रह: यह CGPSC और Vyapam का एक बहुत महत्वपूर्ण टॉपिक है।
- गट्टासिल्ली (धमतरी): नेतृत्व – नारायण राव मेघावाले, नत्थूजी जगताप।
- रुद्री-नवागांव (धमतरी): नेतृत्व – नत्थूजी जगताप। इस सत्याग्रह के दौरान पुलिस की गोली से सिंधु कुमार शहीद हुए।
- तमोर (महासमुंद): नेतृत्व – यति यतनलाल, शंकरराव गनौदवाले। इस दौरान बालिका दयावती ने वन अधिकारी को थप्पड़ मारकर विरोध जताया था।
- पोड़ी गांव (सारंगढ़): यह सत्याग्रह “वानर सेना” के गठन के लिए प्रसिद्ध है।
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942):
- रायपुर षड्यंत्र केस (रायपुर डायनामाइट कांड):
- नेता: परसराम सोनी।
- उद्देश्य: डायनामाइट बनाकर जेल की दीवार उड़ाना और साथी क्रांतिकारियों को आजाद कराना।
- परिणाम: मुखबिरी के कारण योजना असफल हो गई और परसराम सोनी सहित कई क्रांतिकारी गिरफ्तार कर लिए गए।
- आंदोलन की शुरुआत में 9 अगस्त, 1942 को रायपुर में एक विशाल जुलूस निकाला गया, जिसका नेतृत्व रणवीर सिंह शास्त्री ने किया। इस दौरान रायपुर के “नागपुरे” नामक एक युवक पुलिस की गोली से शहीद हो गए।
- रायपुर षड्यंत्र केस (रायपुर डायनामाइट कांड):